गोर्खालैंड क्षेत्रीय प्रशासन

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पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग और दवार्स क्षेत्र में रहने वाले नेपालियों/गोर्खाओं ने अपने लिए एक अलग राज्य गोर्खालैंड बनाने के लिए प्रस्ताव रखा था। सन् १९८० में गोर्खा राष्ट्रीय मुक्ति मोर्चा (Gorkha National Liberation Front) पार्टी के नेता सुभाष घिसिंग ने एक अलग राज्य गोर्खालैंड के लिए एक हिंसात्मक आंदोलन छेड़ा था। इस आंदोलन के फलस्वरुप १९८८ में दार्जिलिंग गोर्खा हिल काउंसिल का गठन हुआ। दा०गो०हि०का० एक नया राज्य बनाने के लिए उसके लक्ष्यों को पुरा न कर सका, जो सुभाष घिसिंग के पतन के साथ खत्म हो गया और २००७ में बिमल गुरुंगग के साथ एक नये पार्टी गोर्खालैंड जनमुक्ति मोर्चा (गो०ज०मु०मो०) का उत्थान हुआ। इन्होने गोर्खालैंड राज्य के निर्माण के लिए एक दूसरा आन्दोलन छेड़ा। गो०ज०मु०मो० ने गोर्खालैंड राज्य के निर्माण के लिए तीन साल तक आन्दोलन किया, आन्दोलन के तीन साल बाद गो०ज०मु०मो० दार्जिलिंग पहाड़ी क्षेत्र पर अर्ध-शासन चलाने के लिए राज्य सरकार के साथ एक समझौते पर पहुँची। २ सितम्बर २०११ को गो०क्षे०प्र० के निर्माण के लिए पश्चिम बंगाल वैधानिक सभा (West Bengal Legislative Assembly) में एक ज्ञापन पत्र पेश किया गया। गो०क्षे०प्र० के पास प्रशासनिक शक्ति, कार्यकारी शक्ति और आर्थिक शक्ति होगी लेकिन वैधानिक शक्ति नहीं होगी। उच्च न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश के उपस्थिति में एक १० सदस्यीय साझा सत्यापन समिती ने दवार्स और तराई को गो०क्षे०प्र० के अधीन लाने के लिए गोर्खा निवासित क्षेत्र कि जाँच की।

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