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कछवाहा राजपूत राज देव ने १६वीं शताब्दी मे पहली बार बला चौर मे आकर रहना शुरू किया अपने परिवार के साथ, उनका संबध जयपुर के राज घराने के साथ था। राज देव ने यहा भक्ति करनी शुरू की और इस जगह का नाम अपने पुत्र बलराज देव के नाम पर रखा। राज देव की मृत्यु १५९६ मे हुई। स्थानिया लोगो ने उनकी मज़ार बनाई और उसे बाबा बलराज के नाम से पूजने लगे। आज भी बाबा बलराज का मंदिर बला चौर मे स्थित है, मंदिर की देख रेख के लिए मंदिर कमेटी भी बनाई गयी १९४९ मे जिनके संरक्षक बलवंत सिंह थे। १५३९ मे शेरशाह सूरी ने हुमायूँ पर हमला करने से पहले यही पर बाबा राज देव से आशीष ली थी।